learning by Practice
Learning by Practice, where experience is shared of Learning and Relearning by practice.
Monday, August 07, 2023
કાંટો કરમાઈ જાશે
Saturday, August 05, 2023
સંરચના
Tuesday, August 01, 2023
deal with death to be alive - maybe part 1
Saturday, October 22, 2022
मेरे राम अभी भी वनवास में हे, कैसे में दीपावली मनाऊं?
Wednesday, June 29, 2022
now to nowhere
Saturday, August 28, 2021
mind I offer and surrender
It was a long day, the big day.
Found him, lost him, been with him, played with him and in his ways, he always beats and wins. And even after loosing you feel to rejoice with his wins.
Sincere efforts and multiple mistakes, he keeps on correcting.
So far and till today in many parts , I had kept reins with my mind. In a hope with this mind can control this body and life. Later I realized mind itself needs to be under control and kept silence to obey & dance on his tune, reflect his beauty and enjoy the delight. I gave up my mind, some time slowly, sometime consciously and many time he snatched it away , while other I forgot and tried to clench & took from him back. I wish he wins.
Not only I give my mind, but my heart, my life, everything... As all is his after all. Didn't we knew this?
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आनीता नटवन्मया तव पुरः श्रीकृष्ण याः भूमिकाः ।
व्योमाकाशखखांबराब्धि वसुवत् त्वत्प्रीतयेद्यावधि ॥
प्रीतस्त्वं यदि चेन्निरीक्ष्य भगवन् मत्प्रार्थितं देहि मे।
नोचेन्मानय मानयेति च पुनर्मामीदृशीर्भूमिकाः॥१॥
हे श्रीकृष्ण,तुम्हें प्रसन्न करने के लिए भट की तरह मैंने अब तक चौरासी लाख भिन्न-भिन्न स्वरूप तुम्हारे सामने उपस्थित किए । अब नानाविध अभिनयों को देख कर यदि आप प्रसन्न हों,तो जो माँगूँ,दे डालिए । यदि नहीं,तो कहदो कि फिर कभी ऐसे अभिनय मत करो।
रत्नाकरोस्ति सदनं गृहिणी च पद्मा ।
किं देयमस्ति भवते जगदीश्वराय ॥
राधागृहीत मनसे मनसे च तुभ्यम् ।
दत्तं मया निज मनस्तदिदं गृहाण ॥२॥
हे जगदीश्वर, रत्नाकर सरीखे अक्षय रत्न कोष में आपका स्थान है और लक्ष्मी आपकी गृहिणी है । तो फिर बताइए कि आपके लिए अब क्या वस्तु देने योग्य रह गई। हाँ,आपका मन आपके पास नहीं है -- अर्थात् राधिकाजी ने आपके मन को चुरा लिया है इस प्रकार आप आजकल- मन-विहीन हो गए हैं -- वही मैं आपको देता हूँ। इसे स्वीकार करिए।
source :https://hi.m.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0:%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A5%80.djvu/%E0%A5%A7%E0%A5%A7%E0%A5%AC
#srikrishna #radha #janmashtami2021 #offering #life #triunepath
Saturday, August 14, 2021
धरती
दुखी भी नही हु
नाखुश, नाराज, निराश भी नही
क्योंकि दिल मे अभी भी सच्ची आश हे
अभीप्सा की अग्नि मे सत का साथ हे।
जंगल जल रहे, नदियां नाली बनी
तुम बस बात करते रहे,
जूठी तस्सली देते रहे,
यंत्रो से तंत्रो से कैसे कोई मंत्रो से
बदलाव लाएंगे, कहते रहे।
मन के झंझाल से, वासना के प्रभाव से
तुम बस अपने लिए एक षड्यंत्र बुनते रहे
अनजान हो या जानकर, यह खेल खेलते रहे।
जीत कर भी तुम हार गए।
उपयुक्त है, मददगार है वो सब पर बस
उसको चलाना है यह देख कर
अत्र तत्र सर्वत्र, तुमहो, तुम धरती हो।
કાંટો કરમાઈ જાશે
સવારથી કાંટો પકડી ને બેઢો કાંઠે ઊભો ઊભો ઓટ ને જોતો કંઠ ભરાઈ આવ્યો ત્યાં સુધી કાંટો નીચે ના મૂક્યો. 'બધી રીતે તપાસ જો કરવી તી અલગ અજબ કંઈ...
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मेरे राम अभी भी वनवास में हे, कैसे में दीपावली मनाऊं? अभी तो सीता की खोज में हे, अंजली पुत्र से मुलाकात अब होने को हे, कैसे पूर्ण अंजली देवे...
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ઘણી બધી લાગણીઓ ક્યાંક ધરબાઈને બેઠી, સમાજની શરતો લાગુ ક્યાં પડશે ગણતા? ભાવવિશ્વ મારું આમ તો વિશાળ છે પણ આ શબ્દોની બારી, તેની પરિભાષા એના ખેડા...
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खुश नही हु मे दुखी भी नही हु नाखुश, नाराज, निराश भी नही क्योंकि दिल मे अभी भी सच्ची आश हे अभीप्सा की अग्नि मे सत का साथ हे। जंगल जल रह...