Saturday, August 14, 2021

धरती

खुश नही हु मे
दुखी भी नही हु
नाखुश, नाराज, निराश भी नही
क्योंकि दिल मे अभी भी सच्ची आश हे
अभीप्सा की अग्नि मे सत का साथ हे।

जंगल जल रहे, नदियां नाली बनी
तुम बस बात करते रहे,
जूठी तस्सली देते रहे,
यंत्रो से तंत्रो से कैसे कोई मंत्रो से
बदलाव लाएंगे, कहते रहे।


मन के झंझाल से, वासना के प्रभाव से
तुम बस अपने लिए एक षड्यंत्र बुनते रहे
अनजान हो या जानकर, यह खेल खेलते रहे।
जीत कर भी तुम हार गए।

यंत्र, तंत्र, ना कोई मंत्र से होगा परिवर्तन।
उपयुक्त है, मददगार है वो सब पर बस
उसको चलाना है यह देख कर
अत्र तत्र सर्वत्र, तुमहो, तुम धरती हो।

धरती वैभव (उर्फ earth abundance)
13-08-2021

We have misused technology, systems and rituals.. we have used them for our convenience and profit, used them by showing fear, division, desires and propaganda and what not..

It is still time to return...

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