कर रहे थे हम चर्चा,
महेमान दे रहे थे
अपने शब्दो से अनहद का पर्चा।
उन्होंने मङ्गल कामना जताई,
बहार आये, लोग जुड़े और भीड़ बढ़े यहा।
नव जीवन मे सौंदर्य ढले यहाँ।
वही, अंदर से आवाज़ आई।
पहले तो सिर्फ 'भीड़, भीड़' यह गुंजन सुनाई दी।
और गूंज के बीच मे से
उसने कहा,
' तुम्हे पता हे, भीड़ इकठ्ठा करने की लालच क्या बनाती हे। भीड़ से भेड़िया।'
रुक गया मे, थोड़ा हस दिया में।
भीड़ वही है पर कभी मेरे अंदर वह गभराहट लाये। तो कभी वही भीड़ मुझे महफूज़ कराये, की कोई हे।
कभी उसमे शामिल होने के लिए,
कभी भीड़मे से आगे निकलने के लिए,
कभी भीड़ से दूर होने के लिए
क्या क्या दाव लगाये?
कहाँ कहाँ दौड़ लगाई?
कभी भड़ भड़ भड़के भीड़के साथ
कभी तड़ तड़ ताड़ उठे भीड़के सामने
भीड़ अपनापन जताए और भेद भी बताए।
भीड़ इन्सान को क्या क्या बनाये,
क्या क्या करवाए।
आप अकेले हो
आप भीड़ मे हो
क्या आप सच मे आप ही हो?
भीड़
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