'जाने क्या ढूंढता हे ये मेरा दिल, तुझको क्या चाहिए जिंदगी?'
आज यूट्यूब पर जाते ही लकी अली द्वारा गाया गया यह गाना सामने आया। उसको सुना, उनकी आजकी आवाज़ के साथ।
पिछले १०महीने, १० साल या ज्यादा, यही जीवन रहा। यह सिर्फ और सिर्फ गाना नही बल्के प्रश्न रहा। जिसका उत्तर शायद में आये दिन खोजता रहा, खोजने की कोशिश करता रहा।
कभी शारीरिक और भौतिक पैमाने पर तो भावना की, सवेंदनाओ की गहराई हो। या कल्पना के पर पे सवार विचारो की उड़ान। के फिर इस भौतिक भाव सवेंदना विचारो के परे, आध्यात्म का विकास। है समय कुछ कोशीश जारी रही।
क्योंकि आज के दिन तो पुराना हिसाब चुकताना है, नया हिसाब करना है। कब तक भागते रहे, कब तक अपना ही अप्रैल फूल या मिस्टर कूल बनाये।
जब यह सवाल, गाने में बार बार सुना, तो ऐसा लगा कि यह मेरा दिल जो कच्चा है, वो सच्चा दिल ढूंढ रहा। उसिके पास। अपनी सच्चाई, साहस को जिंदगी तो भेट देना चाहता। पर जिंदगी।
ढूंढो! पूछो? बार बार पूछो!
बेवकूफ कब तक बनावोंगे
आखिर चाहिए क्या तुझे?
क्या है जो ढूंढ रहा?
क्या इसका उत्तर , क्या वो शांति....
क्या वो प्रेम....
'जाने क्या ढूंढता है यह मेरा दिल!
तुझको क्या चाहिए जिंदगी?'
No comments:
Post a Comment