Saturday, May 22, 2021

गिरगिट


गिरगिट।

तुमको हमने, सदा
गिरा हुवा गिन
घिन्न घिन्न कर,
सदा देखा, तो
बस तेरा ऐब ।
उसी नज़र से दुनिया के 
हर इंसान को देखा
और सीना ताने बोला
देखो आदमी की फितरत मे जानता।
सब को गिनती से पहेचानता। 


सब झूठ तेरा, 
तूने कुछ ना देखा।
गिरगिट मुस्कुराते बोला।
मुझे तो डर लगता हे,
स्वभाव से मजबूर हु
रक्षण करने अपने आप 
यह रंग बदलता हे।
पर तु तो मुझसे बड़ा डरपोक 
निकला, सदा रंग बदल कर बैठ गया।





Sunday, May 16, 2021

शून्य

शून्य
ना कोई अन्य
बस शून्य।
तुज से मिल
हो जावू धन्य, ओ शून्य।


ओ शून्य,
वृत हो तुम, प्रवृत हो तुम।
तुम से उठती वृत्ति मेरी।
तुम शून्य, प्रकृति
में देखु, सुनयन।
तुम से ही तो हे सारी तृप्ति
पर यह कैसा सयन,
ओ शून्य।

ओ शून्य, 
एक हो तुम फिर क्यों ,
करना पड़ता बार बार चयन?
क्यों लगता एक तू अनेक 
हो यहीं पर ना देख पाए नयन।
होठो पर रहे शून्य गयन,
शांति मे रहू सदा मगन।
ओ शून्य,
तुम जो मिलो तो
हो जावू धन्य

Saturday, May 15, 2021

बस लिख दिया

गत गत घाट घाट गद गद,
चल चल पाल पाल चढ़ चढ़।
मत मत ढाल ढाल मद मद,
पल पल हाल हाल पढ़ पढ़।
पट पट डाल डाल पद पद,
कल कल जाल जाल कद कद।
जम जम काल काल जग जग,
कम कम साल साल कर कर।

Thursday, May 13, 2021

आज

आज से प्रारंभ,
आज ही अंत।
आज जीवन,
आज मौत।
काज किसके,
आज मिलता?
काज मुझसे,
आज खिलता?
काश मे भी
आश चुनता।
आज सजाये,
आज वधाये।
आज को अपना
ताज बनाये।






उसका

आनंद भी उसका,
आतंक भी उसका
आक्रंद भी उसका,
आक्रोश भी उसका,
आवाज भी उसका
आधार भी उसका।

उसको सब कहते, करते,
या उसके कराये, रहते।
राहत नही,जब तक चाहत
जानत नही जब तक भागत।



Wednesday, May 12, 2021

अमावस

आज अमावस जगी हे,
आसपास तुम नही हो।
यादों कि रोशनी मत जलावो
कुछ ज़ख्म जग जाएंगे।

अंधेरो से मुझे डर नही,
डर मुझे उन सितारो से हे।
जिन्होंने बस दूर रह कर तमाशा देखा,
यह कहते रहे तुम आश रखना,
पर हम नही आएंगे।
तुम्हारे साथ हे, पर कामके नही,
मुझे गिनना और वाह ! वाह ! कहना
सब तो विनिमय हे अब, विनम्र कहा।

आज अमावस जगी हे,
आसपास तुम नही हो।

अगर
मा
विचरे
सृष्टि।

पर किसका आवास यहाँ?

कल अमावस थी,
आज उसका आवास नही।

कल ईद, पूर्णिमा भी आएंगे,
पर किसका आवास यहाँ?
पल के लिए आते जाते,
साथी सारे नाते रिश्ते,
पर कल अमावस थी,
आज उसका आवास नही।
पर किसका आवास यहाँ?
दुःख सुख का आवास कहाँ?
जीवन मृत्यु का आवास कहाँ?
देखनेवाला बोल गया,
हरि का आवास हे सब, 
हरि मे सब का वास यहाँ।
दृष्टि मे रखे अपनी सृष्टि,
पल पल मथता अपनी तृप्ति
वो में कैसे देखे जग मे 
वास हरि का सब मे।
कल अमावस, आज पूर्णिमा
गिनता रहता, हिसाब करता
कितना बनाया,कितना बिगाड़ा?
किसने किया, क्यों किया?
अपना नाम - नाते जपता रहता,
यम को वह रोज हप्ता देता,
सभी कार्य को करता रहता,
प्रश्न यह निरंतर रहता,
किसका आवास यहाँ?
जंगल जल रहे,
चीताये जल रही,
सत्य के संग संग
जीवन दफनाया,
कथन कफ़न का
जब याद आया,
साँस थी आखिर
आती जाती
पर इन साँसों का वास कहाँ?
पर इन साँसों का वास कहाँ?
पता मिल जाए 
तो बता देना
साँस चल रही
तब तक
चलते रहेंगे
सत्य को आवाज़ हरदम देंगे,
यह प्रश्न सदा गूंजते रहेंगे
किसका है आवास यहाँ?

કાંટો કરમાઈ જાશે

સવારથી કાંટો પકડી ને બેઢો કાંઠે ઊભો ઊભો ઓટ ને જોતો કંઠ ભરાઈ આવ્યો ત્યાં સુધી કાંટો નીચે ના મૂક્યો. 'બધી રીતે તપાસ જો કરવી તી અલગ અજબ કંઈ...