कल अमावस थी,
आज उसका आवास नही।
कल ईद, पूर्णिमा भी आएंगे,
पर किसका आवास यहाँ?
पल के लिए आते जाते,
साथी सारे नाते रिश्ते,
पर कल अमावस थी,
आज उसका आवास नही।
पर किसका आवास यहाँ?
दुःख सुख का आवास कहाँ?
जीवन मृत्यु का आवास कहाँ?
देखनेवाला बोल गया,
हरि का आवास हे सब,
हरि मे सब का वास यहाँ।
दृष्टि मे रखे अपनी सृष्टि,
पल पल मथता अपनी तृप्ति
वो में कैसे देखे जग मे
वास हरि का सब मे।
कल अमावस, आज पूर्णिमा
गिनता रहता, हिसाब करता
कितना बनाया,कितना बिगाड़ा?
किसने किया, क्यों किया?
अपना नाम - नाते जपता रहता,
यम को वह रोज हप्ता देता,
सभी कार्य को करता रहता,
प्रश्न यह निरंतर रहता,
किसका आवास यहाँ?
जंगल जल रहे,
चीताये जल रही,
सत्य के संग संग
जीवन दफनाया,
कथन कफ़न का
जब याद आया,
साँस थी आखिर
आती जाती
पर इन साँसों का वास कहाँ?
पर इन साँसों का वास कहाँ?
पता मिल जाए
तो बता देना
साँस चल रही
तब तक
चलते रहेंगे
सत्य को आवाज़ हरदम देंगे,
यह प्रश्न सदा गूंजते रहेंगे
किसका है आवास यहाँ?