गिरगिट।
तुमको हमने, सदा
गिरा हुवा गिन
घिन्न घिन्न कर,
सदा देखा, तो
बस तेरा ऐब ।
उसी नज़र से दुनिया के
हर इंसान को देखा
और सीना ताने बोला
देखो आदमी की फितरत मे जानता।
सब को गिनती से पहेचानता।
सब झूठ तेरा,
तूने कुछ ना देखा।
गिरगिट मुस्कुराते बोला।
मुझे तो डर लगता हे,
स्वभाव से मजबूर हु
रक्षण करने अपने आप
यह रंग बदलता हे।
पर तु तो मुझसे बड़ा डरपोक
निकला, सदा रंग बदल कर बैठ गया।
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