Friday, October 26, 2018

आधा अधूरा....

आधा अधूरा जिया हूं।
धीरे धीरे मर रहा हूं,
अधरों पे तेरा नाम, ओ राधे।

धीरे धीरे मर रहा हूं,
इस आश में,
तू आके मुझे घेरे
ना जाने दे कहीं
अपने दिल मे रखले।

अब चाँद नहीं भाता,
नाही उतना लुभाता।
पूर्णिमा के रात,
अपना अधूरापन
यह पागलपन
इन बंध दीवारों के संग बांटता।

अधूरा अधूरा जी रहा
किन्ही टुकड़ो में बटा
ना था तुझे पता?

नहीं जीना ऐसे आधा आधा
हाथ थाम लेना
हृदय थम जाये इससे पहले।
महल नही, तेरी मौजूदगी चाहिए
अब रुक मत जाना,
पहेलियां, हवेलियों के चक्कर में।
आधा आधा बन बहुत घूम लिया तु,
वन जाने से पहले,
वान उतर जाने से पहले
तू आजा ना
अधरोपे अधर लगाके नाम पूरा कर जाना।

आधा आधा कब तक जियूँ?
याद कर कर, जिंदा कब तक राखु?
धाम तेरा टूटा जरूर है,
पूरा टूट जाये, प्राण छूट जाए,
वो आखरी घड़ी मत आना।
आना है तो अब आ,
थोड़ा सा शैशव, थोड़ा सा यौवन
तुझ पर में दे दु।

आधा आधा जी रहा
राह तेरी देख रहा।
बाद नही आज
बाह पकड़ गिरिराज
कही में और नीचे ना घिर जाऊ,
यह आधा अंत
नहीं चाहिए अब कोई संत
जब अधूरा बन जिया सिर्फ तेरे लिये ओ अनंत।

आधा अधूरा....
अधूरे सब
अधर धर....
शरण तेरी चरण
करण धर



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