Friday, May 24, 2019

dream again

Had written it few years ago in roman script. today presenting it with devnagari.
Tentatively, it was 3rd may 2010.


बाँध आँखो से देखा था एक सपना|
उसे आज फिर से देखने का मन चाहा, खुली आँखो से उसे देखना चाहू|
 विधवान कह रहे जीवन एक स्वप्ना हे, हा तो स्वप्ना को मे जीना चाहू. उस स्वप्ना को सोने सा सजन मे चाहू. थोड़ी देर तक रहस्य मे गुम था. स्वप्ना के जगह तारे देख रहा, पर आज सूरज फिर निकाला हे, ओर मे भी निकल पड़ा हू, वो स्वप्ना को देखने; फिर से उसे जीने के लिए.

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