Saturday, August 28, 2021

mind I offer and surrender

It was a long day, the big day.
Found him, lost him, been with him, played with him and in his ways, he always beats and wins. And even after loosing you feel to rejoice with his wins.
Sincere efforts and multiple mistakes, he keeps on correcting.

So far and till today in many parts , I had kept reins with my mind. In a hope with this mind can control this body and life. Later I realized mind itself needs to be under control and kept silence to obey & dance on his tune, reflect his beauty and enjoy the delight. I gave up my mind, some time slowly, sometime consciously and many time he snatched it away , while other I forgot and tried to clench & took from him back. I wish he wins.

Not only I give my mind, but my heart, my life, everything... As all is his after all. Didn't we knew this?


____________


आनीता नटवन्मया तव पुरः श्रीकृष्ण याः भूमिकाः ।
व्योमाकाशखखांबराब्धि वसुवत् त्वत्प्रीतयेद्यावधि ॥
प्रीतस्त्वं यदि चेन्निरीक्ष्य भगवन् मत्प्रार्थितं देहि मे।
नोचेन्मानय मानयेति च पुनर्मामीदृशीर्भूमिकाः॥१॥

हे श्रीकृष्ण,तुम्हें प्रसन्न करने के लिए भट की तरह मैंने अब तक चौरासी लाख भिन्न-भिन्न स्वरूप तुम्हारे सामने उपस्थित किए । अब नानाविध अभिनयों को देख कर यदि आप प्रसन्न हों,तो जो माँगूँ,दे डालिए । यदि नहीं,तो कहदो कि फिर कभी ऐसे अभिनय मत करो।

रत्नाकरोस्ति सदनं गृहिणी च पद्मा ।
किं देयमस्ति भवते जगदीश्वराय ॥
राधागृहीत मनसे मनसे च तुभ्यम् ।
दत्तं मया निज मनस्तदिदं गृहाण ॥२॥

हे जगदीश्वर, रत्नाकर सरीखे अक्षय रत्न कोष में आपका स्थान है और लक्ष्मी आपकी गृहिणी है । तो फिर बताइए कि आपके लिए अब क्या वस्तु देने योग्य रह गई। हाँ,आपका मन आपके पास नहीं है -- अर्थात् राधिकाजी ने आपके मन को चुरा लिया है इस प्रकार आप आजकल- मन-विहीन हो गए हैं -- वही मैं आपको देता हूँ। इसे स्वीकार करिए।

source :https://hi.m.wikisource.org/wiki/%E0%A4%AA%E0%A5%83%E0%A4%B7%E0%A5%8D%E0%A4%A0:%E0%A4%B0%E0%A4%B9%E0%A5%80%E0%A4%AE-%E0%A4%95%E0%A4%B5%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A4%BE%E0%A4%B5%E0%A4%B2%E0%A5%80.djvu/%E0%A5%A7%E0%A5%A7%E0%A5%AC

#srikrishna #radha #janmashtami2021 #offering #life #triunepath 

Saturday, August 14, 2021

धरती

खुश नही हु मे
दुखी भी नही हु
नाखुश, नाराज, निराश भी नही
क्योंकि दिल मे अभी भी सच्ची आश हे
अभीप्सा की अग्नि मे सत का साथ हे।

जंगल जल रहे, नदियां नाली बनी
तुम बस बात करते रहे,
जूठी तस्सली देते रहे,
यंत्रो से तंत्रो से कैसे कोई मंत्रो से
बदलाव लाएंगे, कहते रहे।


मन के झंझाल से, वासना के प्रभाव से
तुम बस अपने लिए एक षड्यंत्र बुनते रहे
अनजान हो या जानकर, यह खेल खेलते रहे।
जीत कर भी तुम हार गए।

यंत्र, तंत्र, ना कोई मंत्र से होगा परिवर्तन।
उपयुक्त है, मददगार है वो सब पर बस
उसको चलाना है यह देख कर
अत्र तत्र सर्वत्र, तुमहो, तुम धरती हो।

धरती वैभव (उर्फ earth abundance)
13-08-2021

We have misused technology, systems and rituals.. we have used them for our convenience and profit, used them by showing fear, division, desires and propaganda and what not..

It is still time to return...

Join me and my buddies - earth hope

Monday, July 12, 2021

તારા વગર

વરસાદનાં આ છાંટા,
તારા વગર લાગે
માત્ર કાંટા.

તારા વગર,
કહ્યા ખબર,
કેમ વીતે
રહ્યા વગર.
ન, કોઈ ગીત,
ન, કોઈ ગતી.
પાછળ રહી 
ગયેલી વાતો
શાને આજે
વાદળ વર્ષે
ના કોઈ હર્ષે
હવે બસ કર
રહેમ કર
હૈયું રડશે
ઘડી ના કાંટે
વરસાદના છાંટે
તારી વીજળી
મારી સજની
નથી, કે તુ
આમ મજા
આમ સજા
લે કે દે?
મન, હૃદય
નથી કાંઈ 
મારું , ને
નથી તારું
આ શરીર
માત્ર સળગે
બિન ઇંધણ
આ સાલું,
ચાલુ રમત છે
આમ જતી
ના રહીશ
તારી ગમત
મમત ને કહન
મારી માટે
તું ગહન છે
તારા વગર
બધે ગ્રહણ
સળગે અગન
તારા વગર
બહાર વરસાદ છે
પણ તારા સાદમાં
મારો વરસાદ છે
કેમ કશું બોલી નહિ
હૃદય ને ખોલી
કૂંચી લઈ ગઈ
આ ઉઘાડનો
બહુ ત્રાસ છે
ભીતર તે છતાં
અવકાશ છે
હજુ પણ
આશ છે
ત્યાં પ્રેમનો
રહેવાસ છે
આજે નહિ
કાલે સહી
સિક્કા સહી ના
હિસ્સા કદી ના
પૂરો વિશ્વાસ છે
તું આવશે
ધીમે ધીમે
સુર રેલાવશે
ને જીવન
તારા પડધે 
પડખે, ગીત
નવા ગાશે.
તારા વગર
એ સુના 
છાયા જે
ના પામ્યાં
કાયા તેની
રૂપ નવા
નિત સજાવશે.


Wednesday, July 07, 2021

સમય વીતી

સમય વીતી જઇ રહ્યો,
પણ તું તો ખોવાયો છે.
બસ મુજ પર શું વીતી રહી
કેમ આવો રઘવાયો છે?
ઘાયલ કે કાયલ બની કંગાલ
બંગલા બને હર હાલ
એમ જંતરાયો, માલ ને હાટ
કાપ ને કાટ ની રાડા રાડ
રીતસરની છૂટી ત્રાડ
બસ! હવે બહુ થઇ મોકાણ 
કર તું નૂતન રોકાણ
અર્પી દે સર્વ પ્રભુને નામ
એનાથી ચાલે જગત નો ભાર
જાણી લે હૃદય ના તાર.
વિખુટા ભલે લાગે, ખોટા ના પાડ
વિખુટા ભલે લાગે, ખોટા ના પાડ
શ્વાસ ખૂટે એ પહેલા, સાંભળી લે સાદ
ઘૂંટે ઘૂંટે ભરિલે એકજ વાત
રઘવાયો ના થા, શ્રદ્ધા રાખ એક સમાન
રઘુ ને છે સર્વ કાંઈ જાણ
સમય મળ્યો કિંમતી ખાણ
પળ પળ કરીદે તેને નામ
જિંદગી ને બંદગીમાં મહાલ 
કહી દે હવે લાગ લગાટ 
રઘુપતિ રાઘવ રાજા રામ.





Tuesday, July 06, 2021

Gulf, again...

 A gulf between me and you,

I feel it, I tell it. 

shall I bare it?

all those bang of silence,

cacophony of life, body & mind.

In hope of listening

to that faint voice

coming from some deep cave within.

Echo of errors, mistakes fills the space,

snatches the peace and leaves the shadow;

is this the result of following the light?

To remain under the shadow of light,

go on with the nature, flow on.

Or there is a choice to be made

every moment, ever fresh

transform and go beyond the forms


Is this gulf going to remain forever?

Or there is a union written, communion to happen?

Every passing question, leaves only two choices

return to base and go on circling, 

or climb up, up & up.

but what about this puff, puff, puff.

Awake, Aware, Alert - make yourselves alive

whatever you do, offer and believe.

ohh! by doing so will gulf disappear?

Ohh! again, a question. 

mute, I stand , listening to bang of silence

again and again, in hope of some gain

may even get a grain, will take it like a rain

pain if that is to be bare, whether it is rare

or is it fair? not a single interrogation to dare.

just walk on, in midst of opposite pair.

keep balance on, among opposite pair.

gulf is not there to engulf in dark air

it may flung, grind, and stir

evoke and climb the stair

every moment, need is dire

keep flaming, burning the fire

it will set unwanted on pyre

today or tomorrow crossing, surer

way to happen, just prepare

no time to pamper

prompt response, share , share & share

love & light, laughter only to hear

a glad start in neutral gear

that is all asked, o dear.






Wednesday, June 30, 2021

खाली लिखा

खालीपन का पन्ना आज मेरे जीवन का हिस्सा
लिखा नही हे कुछ भी, फिर भी सुनाता हूं क़िस्सा।

जीवन के उन पल पर खालीपन लिखा हे,
तू क्यों बार बार पढ़ता भरले - भरले

क्यों ना पढ़ पाता जो खाली कहना चाहे?
थोड़ा सा ख़ालीपन मे भी तू  जी ले।

आस-पास बहुत कुछ हे, पर यह कैसी आश है?
जो है वो नही, जो नही वो तुझे कैसे दिख जाता।

लिफ़ाफ़ा कैसे खाली हो, जिंदा हूँ मे
गहराई में, जरा तू झांख ले
ख़ालीपन आईना हे, जब तक स्व नही।



Thursday, June 24, 2021

જે ને માટે, જે ના દ્વારા, જે ના થી

જે મળ્યું, એને માણ્યું નહીં;
જે જાણ્યું, એને પાળ્યું નહીં
જે ન હતું તેને ખોજવામાં
જે હતું તેને પ્રકાશયું નહીં.

Again in this emptiness i seat...
Week after week it visits me.
When it comes,i want to fill it 
And leave the feelings soon.
When it leaves me, i don't want to fill
As what is given is so priceless
That just being there is enough.
Yet,i loose, old habits tricks me.

વેગ છું એનો , vague નથી
તાવ ચઢાવી હવે દાવ નથી રમવો
જે દવ છે અંદર તેને પરિવર્તિત કરી
એક સુંદર સત્ય શિવમય જીવન
તેને દઈ દવ પૂર્ણ, આટલુંજ કરવું.

વૈભવ (વેગ, વિદ્યુત વેગ)
૨૪-૦૬-૨૦૨૧


तेरी वाणी

मे पूछता
तू चुप बैठे,
चुभती मुझे
तेरी चुपी,
यह जान के भी
अनजान बने।
बैर ना यारी
सदा बहती
कब कहती
मौन की वाणी।
सार हे सब का
अब माही
रंग भरी, 
तेरी वादी
रस भरीले
कस चढ़ी के
चार दिन में
खुट जाती सारी।



Saturday, June 12, 2021

पथ के राही - पत्थर

मेरे पथ मे मिले तुम राही हो।
मेरे पथ मे मिले तुम राही हो।
जब हो जाता मे गुमराह,
पथ से भटकूँ या ठहरु
साथी तुम, रथी बनते तुम,
जानते तुम हो जो उनका पता,
वही से जो तुम आये हो,
मेरी गति बनाये रखते हो,
जैसे मेरे प्रभु तुम मांहि हो, ओ पत्थर।

पत्थर , कह कर अब तक पहचाना तुम्हे,
पर न जाना था कि, 
तुम कितने तप कर बैठे हो।
ऊर्जा को संचित रख
बिन क्रोध तुम ठोकरों मे बैठे हो।
गति तुम्हारी इतनी वेगवंत, फिर भी
सदा तुम कैसे स्थिर दिखते हो?

लहर लहर वो सब चली गई,
तुम अपने अंदर ठहर गए।
खुद को तरास, खुदी मे रह गये।
छोड़ना था वो छोड पीछे,
 तुम आगे बह गये।
तोड़ना था तो तोड़ कर,
तुम नए रूप मे ढल गये। 
धूल बने या स्फटिक बनो तुम
पथिक की स्मृति में तुम अंकित हो गए,
मेरे परम के प्रतीक तुम आज बन गये,
ओ पत्थर, तुम राह दिखाते यह कह गये
जिसे सुन मे फिर से स्त्रोत से जुड़ गया,
नए प्राण तुम जीवन मे अर्पित कर गये।
पानी,धूप, हवा, धरती व आकाश को धारण कर रहे,
क्या दे तुम्हे, बस वंदित हो गीत लिखू, गान करू
परम् को अणु और अणु मे परम् को जान, ध्यान रखु।

Saturday, May 22, 2021

गिरगिट


गिरगिट।

तुमको हमने, सदा
गिरा हुवा गिन
घिन्न घिन्न कर,
सदा देखा, तो
बस तेरा ऐब ।
उसी नज़र से दुनिया के 
हर इंसान को देखा
और सीना ताने बोला
देखो आदमी की फितरत मे जानता।
सब को गिनती से पहेचानता। 


सब झूठ तेरा, 
तूने कुछ ना देखा।
गिरगिट मुस्कुराते बोला।
मुझे तो डर लगता हे,
स्वभाव से मजबूर हु
रक्षण करने अपने आप 
यह रंग बदलता हे।
पर तु तो मुझसे बड़ा डरपोक 
निकला, सदा रंग बदल कर बैठ गया।





Sunday, May 16, 2021

शून्य

शून्य
ना कोई अन्य
बस शून्य।
तुज से मिल
हो जावू धन्य, ओ शून्य।


ओ शून्य,
वृत हो तुम, प्रवृत हो तुम।
तुम से उठती वृत्ति मेरी।
तुम शून्य, प्रकृति
में देखु, सुनयन।
तुम से ही तो हे सारी तृप्ति
पर यह कैसा सयन,
ओ शून्य।

ओ शून्य, 
एक हो तुम फिर क्यों ,
करना पड़ता बार बार चयन?
क्यों लगता एक तू अनेक 
हो यहीं पर ना देख पाए नयन।
होठो पर रहे शून्य गयन,
शांति मे रहू सदा मगन।
ओ शून्य,
तुम जो मिलो तो
हो जावू धन्य

Saturday, May 15, 2021

बस लिख दिया

गत गत घाट घाट गद गद,
चल चल पाल पाल चढ़ चढ़।
मत मत ढाल ढाल मद मद,
पल पल हाल हाल पढ़ पढ़।
पट पट डाल डाल पद पद,
कल कल जाल जाल कद कद।
जम जम काल काल जग जग,
कम कम साल साल कर कर।

Thursday, May 13, 2021

आज

आज से प्रारंभ,
आज ही अंत।
आज जीवन,
आज मौत।
काज किसके,
आज मिलता?
काज मुझसे,
आज खिलता?
काश मे भी
आश चुनता।
आज सजाये,
आज वधाये।
आज को अपना
ताज बनाये।






उसका

आनंद भी उसका,
आतंक भी उसका
आक्रंद भी उसका,
आक्रोश भी उसका,
आवाज भी उसका
आधार भी उसका।

उसको सब कहते, करते,
या उसके कराये, रहते।
राहत नही,जब तक चाहत
जानत नही जब तक भागत।



Wednesday, May 12, 2021

अमावस

आज अमावस जगी हे,
आसपास तुम नही हो।
यादों कि रोशनी मत जलावो
कुछ ज़ख्म जग जाएंगे।

अंधेरो से मुझे डर नही,
डर मुझे उन सितारो से हे।
जिन्होंने बस दूर रह कर तमाशा देखा,
यह कहते रहे तुम आश रखना,
पर हम नही आएंगे।
तुम्हारे साथ हे, पर कामके नही,
मुझे गिनना और वाह ! वाह ! कहना
सब तो विनिमय हे अब, विनम्र कहा।

आज अमावस जगी हे,
आसपास तुम नही हो।

अगर
मा
विचरे
सृष्टि।

पर किसका आवास यहाँ?

कल अमावस थी,
आज उसका आवास नही।

कल ईद, पूर्णिमा भी आएंगे,
पर किसका आवास यहाँ?
पल के लिए आते जाते,
साथी सारे नाते रिश्ते,
पर कल अमावस थी,
आज उसका आवास नही।
पर किसका आवास यहाँ?
दुःख सुख का आवास कहाँ?
जीवन मृत्यु का आवास कहाँ?
देखनेवाला बोल गया,
हरि का आवास हे सब, 
हरि मे सब का वास यहाँ।
दृष्टि मे रखे अपनी सृष्टि,
पल पल मथता अपनी तृप्ति
वो में कैसे देखे जग मे 
वास हरि का सब मे।
कल अमावस, आज पूर्णिमा
गिनता रहता, हिसाब करता
कितना बनाया,कितना बिगाड़ा?
किसने किया, क्यों किया?
अपना नाम - नाते जपता रहता,
यम को वह रोज हप्ता देता,
सभी कार्य को करता रहता,
प्रश्न यह निरंतर रहता,
किसका आवास यहाँ?
जंगल जल रहे,
चीताये जल रही,
सत्य के संग संग
जीवन दफनाया,
कथन कफ़न का
जब याद आया,
साँस थी आखिर
आती जाती
पर इन साँसों का वास कहाँ?
पर इन साँसों का वास कहाँ?
पता मिल जाए 
तो बता देना
साँस चल रही
तब तक
चलते रहेंगे
सत्य को आवाज़ हरदम देंगे,
यह प्रश्न सदा गूंजते रहेंगे
किसका है आवास यहाँ?

Monday, March 08, 2021

भेद से परे

मुझे इन भेद से परे उठना हे,
भेडियो के बीच नही, शेर बन कर रहना हे।
बिक गया है ईमान वहां मान कहा मिले, मिलता है सन्नमान भी बाजारों पर।
बस जब से मेरी नज़र तुजसे हो
कठिन घना सफर तुजसे तुज तक हो।
एकत्व के तत पर, प्रेम से मेरी सब गत हो।
आंखे अब रूप ना देखे, जो जान गई हो तत को।
जब जान लिया तत्वरस तो रूप रंग का भेदना हो।
भेद से तो जन्मी थी वेदना
वरना चेतना में कहा होता तेरा मेरा।

अब सचेतन हु, देखता हूं 
इस आवागमन को
दमन उफ़न मस्त कष्ठ सब
परिवर्तित तेरे आनंद में।

में अब सचेतन हु।

Saturday, March 06, 2021

महाकाल और सावित्री

वोह भी एक काल था
जो चलना सीखा गया
अंतर जगत की खोज का
प्रदीप जला गया

रूपांतर की चाबी से
अंतर मिटा गया
वोह भी एक काल था
जो महाकाल से मिला गया

कल कल करके बह चला
ठहरना बता गया
नित नित्य नीति पे, से
खुलना सीखा गया।

वैभव
०६/०३/२०२१

निवेदन - 11 मार्च को महाशिवरात्रि के दिन , महाकाल के साथ सावित्री के माध्यम से भेंट करने का सोचा हे। अगर आप जुड़ना या जानकारी चाहिए तो संदेश भेजे। धन्यवाद।


Sunday, February 28, 2021

Kathak aaur Me

 


यह कथक जो  


गुरु शिष्य परम्परा से चलता आया

ज्ञान मनोरंजन भक्ति को पाना 

जीवन कथा को नृत्य रूप दिखाना   

मंदिर दरबार से रंगमंच तक छाया।  


कथनी करनी को हर रस में सजाना 

घुंघरू संग ताल पर नाचना - नचाना 

पलटे भाग्य रंग अभिनय दिखाना 

बहिर्मुख से अंतरंग को जाना। 


कथक का मेरे जीवन में आना

जैसे प्रेमी का प्रीतम को पाना

साधना का यह मार्ग अनोखा

लय यात्री की आरोह गत-चाल चलना  


इस तन की धारा का होमित होना 

भूतल से परमप्रिय  को पुकारना

जैसे राधा - मीरा का समर्पित होना

कुछ ऐसा मैंने तत्कार के बोलो को जाना 


ता थई थई तत

आ थई थई तत।।  २।। 


परमप्रिय को अपनी बात बताना

जीवन में स्थिरता को पाना

सम आदि का ध्यान लगाना

कथक से मेने खुद को जाना। 

कथक से मेने खुदा  को पान। 


- vaibhav pandya
February 2021

for


Tuesday, January 12, 2021

Ions of Karma

 In Basic Chemistry  courses we all must have learnt about cation and anion. Formation of negative and positive charged atom. Where in ground state all the atoms are neutral. Only through exchange of electron, a process of ionization - removal or gaining of electron on outer most shell of electronic configuration of an atom , brings ion. Many of the atom are either found in ionic form or they combine with eachother to form a compound. 



Now, Just look at this two words

ACTION and INACTION

and read them like , Act - Ion and Inact - Ion.

from outer behavior of human life, either of the Ion would be seen.  and yoga asks us to come to this natural state without getting affected and still doing electronic game of life. 

There is lot more into subject of Act - Ion and Inact- Ion, but right now just this much to ponder upon.


Monday, January 11, 2021

Birth and Death

During my yoga teacher training course, Hansa Ma gave us beautiful definition of life. 
That life, which we consider happens between birth and death. In simple and short story, she said life is what happens between 'B' and 'D'. Life is something which happens between birth and death. that is generally what we know. But we forget there is a 'C' in between. C for Choices. This choices is what makes life. 

The Mother of Sri Aurobindo Ashram, Puducherry says

Life is a perpetual choice between truth and falsehood, light and darkness, progress and regression, the ascent towards the heights or a fall into the abyss. It is for each one to choose freely.

29 February 1952

On day of my birth, I have chosen and consecrate all to Parampriya. 

The 35th year of this physical existence and year 2021, I wish to work upon few things and as a practice have taken few steps. Sharing those steps below.

  1. Goal and area of work - practice & development for the year can be summed up in 5 C's *
    • Capacity (mainly at physical level but not limited there.)
    • Collaboration 
    • Creation
    • Concentration, and
    • Consecrate (अर्पण किया हुआ) 
  2.  In process I have made a list of 108 things vaibhav would be creating in the year 2021. {even after writing 108, it seems list can go beyond 108.} To fulfill all the need of the creation, there require devotion of time and energy to lot of learning & mastering few art as well as create.
  3. To fulfill above goal, I have taken a break from almost all forms of Social Media (Whatsapp, Instagram, Facebook). I wish, I could have taken some more other account deletion too but have kept them open. They are LinkedIn and Telegram. Gmail is unattached yet due to technical complications. 
  4. Above social media withdrawal is also part of practice to observe some of the internal working, of whose I have got addicted to. Once 108 are done, I would be back, and in between just to test my own mental & emotional balance and time management, might appear for few days/week. but as of now, and at least for next few weeks, I am away. 
  5. There are other choices which are also taking place, but its better to do them rather speak beforehand. 
  6. Already collaborating with few people to create courses, material, program. If you are interested to collaborate in learning journey or want to learn along with me - drop an email on vaibhav@love2learn.xyz I will share the list and we can have conversation on how, what to build up. 
Yesterday night, I went through all melodrama of neurons and finally plunge into the virtual death for new creation. This whole experience is just amazing and every passing moment, I can see how much mind is accustom to living and dearly clings to it. How Intellect looses the power and serves the senses, making us do things which we want and we do not want.

For some of you this might look shocking, strange or silly. May that be so. 


Hope to see you here and few places more real. and May be on virtual world after gap of time.


* C - of choices and other C's is something I love. C of Carbon is second largest constituents of the body and what is left on earth after we pass away. One of the program I ran last year CiC, in which 14 people got chance to interact & learn is wholly based upon the choices and consciousness. This year, I wish to design it in collaboration with participant & make it more experiential with real projects.




  

Sunday, January 03, 2021

ઉડવું કે ?

ઉડવું કે રડવું, નક્કી કરી લે
ખુદને પિછાણી, પાકું કરી લે.
તારે શાનું ડરવું,
જે હાકિમ કે'હ તે કરવું!

ઉડવું, પડ ફાડ ને પર થી ભરી લે
ફાળ, કદાચ પડીશ ચાર વાર કે બે
વારંવાર, ઉભો થાજે રાખી વિશ્વાસ
અદ્ધર નથી કોઈ બીજો આધાર
પળમાં થઈ જાશે આર- પાર. 

લડવું કે મળવું, નક્કી કરી લે
ઉડવું કે રડવું, નક્કી કરી લે
ખુદને પિછાણી, પાકું કરી લે
સમય ની સાથે, ધીરજ ધરી દે
તારે શાનું ડરવું,
જે હાકિમ કે'હ તે કરવું!

મુસ્તાક થઈ , કે આસક્ત થઈ
થઈ જવામાં જે તું છે
તેને નવ છોડી દે.
પકડી રાખી હવાને, આઝાદી દઈ દે
આઝાદી લઈ લે.
પ્રેમથી ખીલવું, એ પાઠ લઈ દે,
તારે શાનું ડરવું,
જે હાકિમ કે'હ તે કરી દે.

મજા સજા ના આ ભાવ તાલ છોડી દે
સમ થઈ જા ને, મર્મ જાણી લે
તારે શાનું ડરવું,
જે હાકિમ કે'હ તે કરી દે.





Friday, January 01, 2021

lots and tons of wishes...

Lots and tons of wishes for
yet another day,
a yet another year,
Another decade.
where you will not say yet and yet
I haven't not dine this and that 
 and make divine grace wait to act.

Rather you will always say
Let and let
Let thy will be done.
Say it out loud
Feel proud.
Don't treat the time
Just like others
Make it yours.
Moments comes and goes
You do not seat and mourn.
Movement is your life
Moment after moment
In rest and action
Whatever the garment it wore.
Met and kept time on  your side
Let that sets you free.
Always met
And get all, set all;
Trap of net, beware!
That pulls you down 
And push you around
In dream of lush green
Mountain path.
May you enjoy going up
And look down with Compassion's eye.
What you leave behind do not count.
What you will gain ahead do not count.
Just be an eternals fount,
A joy, a light and power all surmount.





કાંટો કરમાઈ જાશે

સવારથી કાંટો પકડી ને બેઢો કાંઠે ઊભો ઊભો ઓટ ને જોતો કંઠ ભરાઈ આવ્યો ત્યાં સુધી કાંટો નીચે ના મૂક્યો. 'બધી રીતે તપાસ જો કરવી તી અલગ અજબ કંઈ...